KAPALBHATI PRANAYAM कपालभाति-प्राणायाम करने का सही तरीका
कपालभाति-प्राणायाम :
' कपालभाति ' शब्द का प्रयोग प्राणायम और शोधन-क्रिया दोनों के लिए किया जाता है | शोधन-क्रिया के अंतर्गत आने वाले कपालभाति की भिन्न-भिन्न चार विधियाँ शास्त्रों में उपलब्ध हैं और इनमें से प्रत्येक क्रिया के लाभ भी अलग-अलग हैं तथा कपालभाति-प्राणायाम की प्रसिद्ध विधि एवं इसके लाभ भी अलग-अलग हैं |
कपालभाती प्राणायाम करने के लिए सिद्धासन,
पद्मासन या वज्रासन में बैठकर सांसों को बाहर छोड़ने की क्रिया करें।
सांसों को बाहर छोड़ने या फेंकते समय पेट को अंदर की तरफ धक्का देना है।
ध्यान रखें कि सांस लेना नहीं है क्योंकि उक्त क्रिया में सांस अपने आप ही
अंदर चली जाती है। कपालभाती प्राणायाम करते समय मूल आधार चक्र पर ध्यान
केंद्रित करना होता है। इससे मूल आधार चक्र जाग्रत होकर कुंडलिनी शक्ति
जागृत होने में मदद मिलती है। कपालभाती प्राणायाम करते समय ऐसा सोचना है कि
हमारे शरीर के सारे नकारात्मक तत्व शरीर से बाहर जा रहे हैं।
विधि :
कपालभाति में मात्र रेचक पर ही पूरा ध्यान दिया जाता है | पूरक के लिए प्रयत्न नहीं करते; अपितु सहजरूप से जितना श्वास अंदर चला जाता है, जाने देते हैं, पूरी एकाग्रता श्वास को बहार फेंकने में ही होता है | ऐसा करते हुए स्वाभाविक रूप से उदर में भी आकुच्चन और प्रसारण की क्रिया होती है |
एक सेकेन्ड में एक बार श्वास को लय के साथ फेंकना एवं सहज रूप से धारण करना चाहिए | इस प्रकार बिना रुके एक मिनट में 60 बार तथा पाँच मिनट में 300 बार कपालभाति-प्राणायाम होता है | कपालभाति-प्राणायाम की एक आवृति 6 मिनट की अवश्य होनी चाहिए | स्वस्थ एवं सामान्य रोगों से ग्रस्त व्यक्ति को कपालभाति 16 मिनट तक करना चाहिए | 16 मिनट में 3 आवृतियों में 900 बार यह प्राणायाम हो जाता है | कैंसर, एड्स, मधुमेह व् डिप्रेशन आदि दू:साध्य रोगों में प्रात : - सायं दोनों समय कपालभाति आधा-आधा घंटा करने से शीध्र लाभ होता है |
सावधानी :
- पेट की ऑपरेशन के लगभग 3 से 6 महीने के बाद ही इस का अभ्यास करें; किन्तु वर्तमान समय में प्रचलित लेजर ऑपरेशन होने पर योग्य योगाचार्य तथा डॉक्टर से परामर्श लेकर तीन से चार सप्ताह बाद भी प्राणायम का अभ्यास प्रारम्भ किया जा सकता है |
- गर्भावस्था, अल्सर, आंतरिक रक्तस्त्राव एवं मासिक धर्म की अवस्था में इस प्राणायाम का अभ्यास न करें |
- 120 श्वास प्रति मिनट की गति से जब इसका अभ्यास किया जाता है, तब सिम्पथेटिक नर्वस सिस्टम क्रियाशील होने से रक्तचाप बढ़ जाता है |
लाभ :
- मोटापा, मधुमेह, गैस, कब्ज, अम्लपित, गुर्दे तथा प्रोस्टेट से सम्बद्ध सभी रोग निश्चित रूप से दूर होते हैं | ह्रदय की धमनियों में आए हुवे अवरोध खुल जाते हैं | डिप्रेशन, भावनात्मक असंतुलन, घबराहट व् नकारात्मकता आदि समस्त मनोरोगों से छुटकारा मिलता है |
- इस प्राणायाम के अभ्यास से आमाशय, अग्न्याशय, लिवर, प्लीहा व् आँतो का आरोग्य विशेष रूप से बढ़ता है |
- इस प्राणायाम से थकान काम होती है और शरीर में स्फूर्ति आती है |
- ये आँखों के निचे के काले घेरो को भी ठीक करता है
- इस प्राणायाम से फेफड़ो का फंकशन भी अच्छा हो जाता है |
- कपालभाति के द्वारा हृदयगति-भिन्नता में कोई कमी नहीं आती |
- कपालभाति के अभ्यास के दौरान, 41. 2 प्रतिशत अधिक ऊर्जा की खपत होती है; किन्तु, इसके अभ्यास के पश्चात ऊर्जा खपत में कोई परिवर्तन नहीं होता | अधिकतम ऊर्जा हमारे खाये हुए कार्बोहाईड्रेट से खर्च होती है |
- कपालभाति का अभ्यास विधिवत किया जाये, तब यह वजन कम करने में लाभकारी हो सकता है |
- कपालभाति के अभ्यास से एकाग्रता बढ़ जाती है |
- कपालभाति छात्रों के लिए तथा कम से काम 46 मिनट तक एकाग्रता न रख पने वालों के लिए अति उपयोगी है |
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