भस्त्रिका-प्राणायाम
भस्त्रिका प्राणायाम से होने वाले फायदे
भस्त्रिका प्राणायाम के लाभ
भस्त्रिका प्राणायाम में ध्यान मे रखने वाली कुछ बाते
भस्त्रिका प्राणायाम क्यों करना चाहिए
भस्त्रिका प्राणायाम
भस्त्रिका प्राणायाम क्या है
भस्त्रिका प्राणायाम कोन करसकता है
भस्त्रिका का अर्थ "धोकनी" होता है | भस्त्रिका शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है | जिस प्रकार एक लौहार उष्णता उत्पन्न करने के लिए धौकनी की मदद से तेज हवा छोड़ कर लोहे को तपा कर उसकी अशुद्धियाँ दूर करने और उसे आकार देने की प्रक्रिया करता है | ठीक वैसे ही भस्त्रिका प्राणायाम में शरीर के अंदर की अशुद्धता और नकारात्मकता को दूर करने के लिए, "धौकनी" की तरह प्रबल वेग से अशुद्ध वायु बाहर निकाला जाता है | और उसी गति से शुद्ध प्राणवायु शरीर के अंदर लिया जाता है |
वात, पित और कफ इन त्रिदोष समस्याओ को दूर करने के लिए भस्त्रिका प्राणायाम एक राम-बाण इलाज है | वर्तमान समय में प्रदूषण युक्त वातावरण में शरीर की अशुद्धि दूर करने के लिए यह एक उत्तम प्राणायाम है | मानव शरीर के फेफड़े दूषित हवा, धूल मिटटी और अन्य अशुद्धियों से ग्रस्त होने पर, भस्त्रिका प्राणायम करना अति लाभकारक होता है |
विधि :
किसी ध्यानात्मक-आसन, यथा-सिद्धासन,पद्मासन व् सुखासन आदि में से किसी भी आसन में सुविधानुसार कमर,गर्दन सीधी करके बैठकर दोनों नासापुटों से श्वास को पूरा अंदर डायफ्राम तक भरना तथा धीरे-धीरे सहजता के साथ छोड़ना ' भस्त्रिका-प्राणायाम ' कहलाता है | प्रारम्भ में ढाई सेकेन्ड में श्वास अंदर लेना एवं उतने ही समय में श्वास को एक लय के साथ बहार छोड़ना चाहिए, जिससे की बिना रुके एक मिनिट में 12 बार के औसत से पाँच मिनट की एक आवृति में साठ (60) बार अभ्यास कर सकें |
कफ की अधिकता या साइनस आदि रोगों के कारण जिनके दोनों नासाछिद्र ठीक से खुल हुए नहीं होते, उन लोगों को पहले दायें नासपुट को बंद करके बायें से रेचक तथा पूरक करना चाहिए | फिर बायें को बंद करके दायें से यथाशक्ति मन्द, मध्यम या तीव्र गति से रेचक तथा पूरक करना चाहिए; फिर अन्त में दोनों नासपुटो से रेचक, पूरक करते हुए भस्त्रिक-प्राणायाम करना चाहिए | इसे डायफ़्रेग्मेटिक डीप ब्रीदिंग भी कहते हैं |
सावधानी :
- जिनको उच्च रक्तचाप, दमा या ह्रदयरोग हो, उन्हें तीव्र गति से भस्त्रिका-नहीं करना चाहिए |
- इस प्राणायाम को करते समय जब श्वास को अंदर भरें, तब उदर नहीं फूलना चाहिए | श्वास डायफ्राम तक भरें, इससे उदर नहीं फूलेगा, पसलियों तक छाती ही फूलेगी |
- इससे शरीर में गर्मी आती है | अतः ग्रीष्म ऋतु में धीमी गति से करना चाहिए |
लाभ :
- भस्त्रिका-प्राणायाम के अभ्यास से प्रतिक्रिया समय (REACTION TIME;किसी भी उद्दीपक के प्रति प्रतिक्रिया में लिया गया समय) में कमी आती है |
- सर्दी-जुकाम, एलर्जी, श्वासरोग, दमा, पुराना नजला व् साइनस आदि समस्त कफरोग नष्ट होते हैं | फेफड़े सबल बनते हैं तथा ह्रदय एवं मस्तिष्क को शुद्ध प्राणवायु मिलने से उनको आरोग्य-लाभ होता है |
- रक्त परिशुद्ध होता है | त्रिदोष सम होता हैं | यह प्राणोत्थान और कुण्डलिनी-जागरण में बहुत सहायक है |
भस्त्रिका प्राणायाम करते समय जब साँस शरीर के अंदर ले तब मस्तिका पर ध्यान लगाएं | अपने आसपास अलौकिक शांति और शुद्धता का भास करें | अपने चित को प्रफुल्लित कर के आंतरिक ख़ुशी का भास करें | और ऐसा महसूस करें की आप के आसपास और समस्त ब्रम्हांड में मौजूद लाभदायी तत्व आप के शरीर में प्रवेश कर रहे है | इस प्रकार की सोच के साथ अगर भस्त्रिका प्राणायाम किया जाये तो इसका लाभ कई गुना अधिक मिलता है |
|| आभार ||
0 Comments