' प्राणायाम ' दो शब्दों से मिलकर बना है - ' प्राण ' और ' आयाम ' | प्राण से तात्पर्य शरीर में सचरित होने वाली वायु (जीवनी शक्ति ) से है तथा आयाम का अर्थ नियमन से है | इस प्रकार प्राणायम से तात्पर्य हुआ - श्वास-प्रश्वास की क्रिया पर नियंत्रण करना | इसका अभ्यास करने से सम्पूर्ण शरीर स्वस्थ रहता है |
प्राणायम के सामन्य नियम :
- प्राणायाम करने का स्थान स्वच्छ एवं हवादार होना चाहिए | यदि खुले स्थान पर अथवा जल (नदी, तालाब आदि ) के समीप बैठकर अभ्यास करें, तो अबसे उतम है |
- नगरों में जहाँ पर प्रदूषण का प्रभाव अधिक हो, वहाँ पर प्राणायाम करने से पहले घी का दीपक, अगरबती या धूपबती जलकर उस स्थान को सुगन्धित करने से बहुत अच्छा रहता है |
- प्रणायाम करते समय बैठने के लिए आसन के रूप में दरी, कम्बल, चादर, रबरमैट अथवा चटाई का प्रयोग करें |
- प्रणायाम के लिए सिद्धासन, सुखासन, या पद्मासन में मेरुदण्ड को सीधा रखकर बैठें | जो लोग जमीन पर नहीं बैठ सकते, वे कुर्शी पर बैठकर भी प्राणायम कर सकते हैं |
- प्राणायाम करते समय अपनी गर्दन, रीढ़, छाती एवं कमर को सीधा रखें | प्राणायाम के अभ्यास के दौरान हाथ/थो को ज्ञान-मुद्रा,चीन-मुद्रा, अपानवायु-मुद्रा व् सूर्य-मुद्रा आदि में से किसी भी मुद्रा में रखें | साथ ही आँखों को भी शाम्भवी-मुद्रा, अगोचरी-मुद्रा, भूचरी-मुद्रा, अर्धोन्मीलित-मुद्रा व् ध्यान-मुद्रा आदि में से किसी एक मुद्रा में रखें |
- श्वास सदा नासिका से ही लेना चाहिए, इससे श्वास शुद्ध होकर अंदर जाता है | मुख से श्वास नहीं लेना चाहिए, समान्यवस्था में भी नासिका से ही श्वास लें |
- धौति, बस्ति, नेति व नौलि आदि शोधन-क्रियाओं के पश्चात प्राणायाम का अभ्यास करने से विशेष लाभ होता है |
- प्राणायाम करने वाले व्यक्ति को अपने आहार-विहार, आचार-विचार पर विशेष ध्यान रखना चाहिए | सदैव सात्विक एवं चिकनाई युक्त आहार ही लें, जैसे फल एवं उनका रस, हरी तरकारी-सब्जी, दूध एवं घी आदि |
हम जब साँस लेते है तो भीतर जा रही हवा या वायु पांच भागों में विभक्त हो जाती है या कहें की वह शरीर के भीतर पांच जगह स्थिर हो जाती है | पांच भागों में गई वायु पांच तरह से फायदा पहुँचाती है, लेकिन बहुत से लोग जो श्वास लेते हैं वह सभी अंगो को नहीं मिल पाने के कारण बीमार रहते हैं | प्राणायाम इसलिए किया जाता है ताकि सभी अंगो को भरपूर वायु मिल सके, जो की बहुत जरूरी है |
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