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SURYA NAMASKAR STEP BY STEP

सूर्य-नमस्कार 

                                       धरती पर ऊर्जा के स्रोत हवा, पानी व सूर्य आदि में से सूर्य ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत ही | इससे प्राणी जगत विशेषतः उर्जित होता है | यह वैज्ञानिक रूप में सिद्ध तथ्य है की सुबह के उदयमान सूर्य की किरणों का हमारे शरीर पर विशिष्ट चिकित्सकीय प्रभाव पड़ता है | सुबह को अलग-अलग प्रकार के बारह आसनों का एक विशेष क्रमपूर्वक अभ्यास करने से हमें चौबीस घंटे ऊर्जा का स्तर बनाये रखने में विशेष सहायता मिलती है | और इस बारह आसनों के क्रम को सूर्य-नमस्कार का नाम दिया है,जो अपने आप में एक स्वतंत्र और पूर्ण व्यायाम है |


सूर्य-नमस्कार के सामान्य नियम :

  • सूर्य-नमस्कार की १२ स्थितियों को एक बार पूरा करना एक आवृति कहलाती है | समय पर्याप्त हो तो सूर्य-नमस्कार से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए प्रत्येक दिन कम से कम १० से १६ आवृतियों का अभ्यास करना चाहिए | 
  • इन १२ स्थितियों को करते समय पूरक, कुम्भक व रेचक को ध्यान में रखने से विशेष लाभ मिलता है | 
  • रोग की अवस्था में सूर्य-नमस्कार नहीं करना चाहिए अथवा योग-शिक्षक से परामर्श लेकर ही धीरे-धीरे अभ्यास करना चाहिए | 
  • प्रत्येक स्थिति का अभ्यास मानसिक मंत्रोच्चारणपूर्वक परमात्मा के प्रति मन ही मन नमस्कार तथा धन्यवाद का भाव जगाते हुए, निर्दिष्ट शरीरस्थ चक्र (शक्तिकेन्द्र) में ध्यान केंद्रित करते हुए करना चाहिए | 

सूर्य-नमस्कार में किये जाने वाले १२ आसनों का क्रम और विधि : 

स्थिति-१:

स्थिति का नाम : प्रणामासन या नमस्कार मुद्रा 
श्वास : सामान्य 
मन्त्र  : ॐ मित्राय नम:
विधि : सूर्योदय के समय सूर्याभिमुख सावधान की स्थिति में खड़े होकर नमस्कार की स्थिति में हाथों को छाती के सामने रखें | अंगूठे ह्रदय के सामने रहें, श्वास की गति सामान्य रहेगी | इस प्रकार हाथों और पैरों को जोड़कर खड़े होने से ऊर्जा के परिपथ का निर्माण होता है | परिणामस्वरूप शरीर शीघ्र ही ऊर्जान्वित हो जाता है |

 

 

 

 

स्थिति-२ : 

स्थिति का नाम : ऊर्ध्वहस्तासना / हस्तोतानासन
श्वास : श्वास लेते हुए 
मन्त्र  : ॐ रवये नम:
विधि : स्थिति १ के बाद श्वास अन्दर भरकर सामने से हाथों को खोलकर उठाते हुए बिना कोहनियाँ मोड पीछे की और ले जाएँ, सिर हाथों के बिच में स्थित रहेगा | श्वास रोककर द्रष्टि आकाश की और रहे, कमर को भी यथाशक्ति पीछे की ओर झुकायें | 

 

 

 

 

 

 

स्थिति-३ : 

स्थिति का नाम : पादहस्तासन 
श्वास : श्वास छोड़ते हुए
मन्त्र  : ॐ सूर्याय नम:

विधि : स्थिति २ के बाद श्वास बहार निकालकर  हाथों को पीछे से सामने झुकाते हुए पैरों के पास जमीन पर टिका दें | यदि हो सके तो हथेलियों को भी पज्जों के दायें-बायें भूमि से स्पर्श करें तथा सिर को घुटनों से लगाने का प्रयास करें, ध्यान रहे की किसी भी स्थिति में घुटने न मुड़े |

 

 

 

 

स्थिति-४ :  

स्थिति का नाम : वाम-अश्वसच्चालनासन
श्वास : श्वास लेते हुए 
मन्त्र  : ॐ भानवे नम:
विधि : स्थिति ३ के उपरान्त अब निचे झुकते हुए हथेलियों को छाती के दोनों ओर टिकाकर रखें | बायाँ पैर उठाकर पीछे से पूरा पज्जा जमीन पर सटाते हुए तानें, दायाँ पैर दोनों हाथों के बिच में रहेगा | घुटना छाती के सामने रहे, द्रष्टि आकाश की ओर हो, श्वास को अन्दर भरकर रखना है | 

 

 

 

 

 

स्थिति-५ : 

स्थिति का नाम : पर्वतासन 
श्वास : श्वास छोड़ते हुए 
मन्त्र  : ॐ खगाय नम:
विधि : श्वास बहार निकालकर दायें पैर को भी पीछे ले जाएँ | गर्दन और सिर दोनों हाथों के बिच में रहे, नितम्ब और कमर ऊपर उठाकर तथा सिर को झुकाकर नाभि को देखने का प्रयास करें | 

 

 

 

 

 

स्थिति-६ : 

स्थिति का नाम : साष्टागासन / अधोमुखशवासन
श्वास : श्वास-प्रश्वास सामान्य
मन्त्र  : ॐ पूष्णे नम:
विधि : हाथों एवं पैरों के पज्जों को स्थिर रखते हुए, छाती एवं घुटनों से भूमि का स्पर्श करें | इस प्रकार दो हाथ, दो पैर, दो घुटने, छाती एवं सिर अथवा थोड़ी; इन आठों अगों के भूमि पर टिकने से यह साष्टागासन बनता है | श्वास-प्रश्वास सामान्य रहेगा | 

 

 

 

 

स्थिति-७ :  

स्थिति का नाम : भुजंगासन 
श्वास : श्वास लेते हुए 
मन्त्र  : ॐ हिरण्यगर्भाय नम:
विधि : श्वास अन्दर भरकर छाती को ऊपर उठाते हुए हाथों को धीरे-धीरे सीधा कर दें, पीछे से दोनों पैर मिले व तने हुए हों | नाभि तक का भाग भूमि पर टिका हुआ एवं द्रष्टि आकाश की ओर रहे |

 

 

 

 

 

 

स्थिति-८ : 

स्थिति का नाम : पर्वतासन 
श्वास : श्वास छोड़ते हुए 
मन्त्र  : ॐ मरीचये नम:
विधि : श्वास बाहर निकालकर कूल्हों को ऊपर उठायें, गर्दन और सिर दोनों हाथों के बिच में रहे, नितम्ब और कमर ऊपर उठाकर तथा सिर को झुकाकर नाभि को देखने का प्रयास करें | 

 

 

 

 

 

 

स्थिति-९ :   

स्थिति का नाम : दक्षिण-अश्वसच्चालनासन
श्वास : श्वास लेते हुए 
मन्त्र  : ॐ आदित्याय नम:
विधि : स्थिति ८ के उपरान्त अब निचे झुकते हुए हथेलियों को छाती के दोनों ओर टिकाकर रखें | स्थितिनुसार दायें पैर का पूरा पज्जा जमीन पर सटाते हुए तानें, बायाँ पैर दोनों हाथों के बिच में रखें, घुटना छाती के सामने रहे, द्रष्टि आकाश की ओर, श्वास को अन्दर भरकर रखना है | 

 

 

 

 

स्थिति-१० :  

स्थिति का नाम : पादहस्तासन 
श्वास : श्वास छोड़ते हुए 
मन्त्र  : ॐ सवित्रे नम:
विधि : स्थिति ९ के बाद श्वास बाहर निकालकर हाथों को पीछे से सामने झुकाते हुए पैरों के पास जमीन पर टिका दें | यदि हो सके तो हथेलियों को भी पज्जों के दायें-बायें भूमि से स्पर्श करके रखें तथा सिर को घुटनों से लगाने का प्रयास करें | ध्यान रहे की किसी भी स्थिति में घुटने न मुड़ें | 

 

 

 

 

 

स्थिति-११ :  

स्थिति का नाम : ऊर्ध्वहस्तासना / हस्तोतानासन
श्वास : श्वास लेते हुए 
मन्त्र  : ॐ अकार्य नम:
विधि :  श्वास अन्दर भरकर सामने से हाथों को खोलकर उठाते हुए बिना कोहनियाँ मोड पीछे की और ले जाएँ, सिर हाथों के बिच में स्थित रहेगा | श्वास रोककर द्रष्टि आकाश की और रहे, कमर को भी यथाशक्ति पीछे की ओर झुकायें | 

 

 

 

 

 

 

स्थिति-१२ :

स्थिति का नाम : प्रणामासन या नमस्कार मुद्रा 
श्वास : श्वास-प्रश्वास सामान्य 
मन्त्र  : ॐ भास्कराय नम:
विधि : सूर्याभिमुख सावधान की स्थिति में लौटते हुए नमस्कार की स्थिति में हाथों को छाती के सामने रखें | अंगूठे ह्रदय के सामने रहें, श्वास की गति सामान्य रखेंगे |  

 

 

 

 

 

 

सूर्य-नमस्कार के लाभ : 

१) सूर्य-नमस्कार एक पूर्ण व्यायाम है | इससे शरीर के सभी अंग-प्रत्यंग बलिष्ठ एवं निरोगी हो जाते हैं | 

२) पेट, आन्त्र, आमाशय,ह्रदय एवं फेफड़े स्वच्छ रहते हैं | 

३) यह अभ्यास मेरुदण्ड एवं कमर को लचीला बनाकर इनमें आयी हुई विकृतियों को दूर करता है | 

४) सम्पूर्ण शरीर में रक्तसचारण अच्छी प्रकार से समप्पन करता है | इससे रक्त में आयी हुई अशुद्धियाँ दूर होकर चर्मरोगों का नाश होता है | 

५) सूर्य का किरण त्वचा पर पड़ने से हमारे शरीर में विटामिन 'डी' का निर्माण होता है | इनसे शरीर की हड्डियां मजबूत हो जाती हैं | 

६) सूर्य-नमस्कार के अभ्यास द्वारा तनावरहित स्थिति में शरीर द्रारा व्यय की जाने वाली ऊर्जा के परिणाम में वृद्धि पायी गयी | 

 

 

                             || आभार ||

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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