ॐ भूर्भुव: स्वः मंत्र का मतलब
ॐ भूर्भुव: स्वः | तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो
देवस्य धीमहि | धियो यो नः प्रचोदयात ||
सान्वय शब्दार्थ :
ॐ - हे सर्वरक्षक परमात्मा, भू: - प्राणों के भी प्राण, सबके प्राणस्वरूप, भुवः - अपानस्वरूप, दुःखो को दूर करने वाले, स्वः - सुखस्वरूप, सबको सुख देने वाले, सवितुः - सकल जगत के उतपत्तिकर्ता, सूर्य अदि, लोक-लोकान्तरों को भी प्रकाशित करने वाले, ऐश्वर्य से परिपूर्ण, देवस्य - दिव्य गुणों से युक्त, आपका, वरेण्यं - सर्वश्रेष्ठ ग्रहण करने योग्य, तत - उस, भर्गः - ज्ञानरूपी तेज, जो की सम्पूर्ण क्लेश-वासनाओं तथा अविधारूपी अंधकार को भस्म करने वाला है, ऐसे शुद्ध तेज को, धीमहि - हम सब धारण करें, प्राप्त करें | हे प्रभु ! आप हमें ऐसा ज्ञान दीजिये, यः - जो नः - हमारी, धियः - बुद्धियों को सदा, प्रचोदयात - कर्तव्य, न्याय और धर्म के मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करता रहे |
पधार्थ :
पधार्थ :
तू ने हमें उतपन्न किया, पालन कर रहा है तू |
तुझसे ही पाते प्राण हम, सर्वकष्ट-हर्ता है तू ||
तेरा महान तेज है, छाया हुवा सभी स्थान |
विश्व की वस्तु-वस्तु में, तू हो रहा है विधमान ||
तेरा ही धरते ध्यान हम, माँगते तेरी दया |
ईश्वर हमारी बुद्धि को, श्रेष्ठ मार्ग पर चला ||
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